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 बीस लाख साल पुरानी झील में इंसानी राज़
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Posted on 03-08-16 6:25 PM     Reply [Subscribe]
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दुनिया में तमाम जानवरों की कई-कई प्रजातियां होती हैं. किसी भी जानवर को ले लीजिए, दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में उनकी अलग-अलग प्रजातियां मिलती हैं.

लेकिन इंसान के साथ ऐसा नहीं. पूरी दुनिया में इंसानों की एक ही प्रजाति है, 'होमो सैपिएंस'. तमाम जीव-जंतुओं की विकास गाथा जुटाने और लिखने पढ़ने वाले इंसान की ख़ुद के बारे में समझ बहुत कम है. आप भी ये जानकर चौंक जाएंगे कि हमें अपने पुरखों के बारे में बहुत कम जानकारी है.

आज से क़रीब बीस लाख साल पहले धरती पर पहला इंसान पैदा हुआ था. तब से क़ुदरत में बहुत से बदलाव हो चुके हैं. इंसान ने इतनी तरक़्क़ी कर ली है. मगर, ख़ुद अपने पुरखों यानी आदि मानव के बारे में हम बहुत कम जानकारी जुटा सके हैं.

वजह ये है कि लाखों साल पहले के इंसानों के कंकाल बहुत कम मिलते हैं. जहां भी मिलते हैं एक-आध टुकड़े, आधी-अधूरी जानकारी. इसके आधार पर कोई ठोस बात कहना वैज्ञानिकों के लिए भी मुश्किल होता है.

मगर, 1984 में इंसानों के हाथ अपने पुरखों की जानकारी का एक बड़ा ख़ज़ाना लगा था. इससे हमें अपने विकास की कहानी को समझने में बहुत मदद मिली.

Image copyrightJavier Trueba MSF SPL

ये ख़ज़ाना मिला था, अफ्रीकी देश केन्या की तुर्काना झील में. जब आठ साल के एक बच्चे का क़रीब पंद्रह लाख साल पुराना कंकाल मिला था. दुनिया में इंसानों के जितने भी कंकाल मिले हैं, पुराने, उनमें ये पहला ऐसा कंकाल था जो संपूर्ण था.

इसे वैज्ञानिकों ने 'तुर्काना ब्वॉय' या तुर्काना झील वाले लड़के का नाम दिया था. हालांकि ये इंसानों के लाखों बरस पहले के पुरखों का कोई पहला कंकाल नहीं था, जो तुर्काना झील में मिला. असल में ये झील, मानव के जानवर से इंसान बनने का पूरा इतिहास संजोए हुए है.

इस झील से हमें पता चलता है कि लाखों साल पहले के इंसान कैसे रहते थे, क्या खाते थे?

कभी हरे-भरे इलाक़े में पड़ने वाली तुर्काना झील आज बड़े रेगिस्तान के बीच पानी की बूंद जैसी है.

Image copyrightNasa Wikimedia commons

वैज्ञानिक कहते हैं कि बीस लाख साल पहले, ये झील बहुत बड़ी थी. तब से इसके आस-पास का माहौल बहुत बदल गया है. हरियाली रेगिस्तान में तब्दील हो चुकी है. झील का दायरा भी बहुत सिमट गया है.

मगर, लाखों साल पहले, ये आदि मानव के रहने का आदर्श ठिकाना था. यहां हरियाली थी, खाना आसानी से मिल जाता था और इंसानों को दुश्मनों से छुपने की जगह भी मिल जाती थी. यहां पर आदि मानव के कंकाल मिलने की एक बड़ी वजह है.

ये झील, ज्वालामुखी की गतिविधियों वाले इलाक़े में पड़ती है. धरती के भीतर की हलचल से, ऊपरी सतह बनती बिगड़ती रहती है. इस वजह से आदि मानवों के कंकाल, भीतरी परतों में छुपकर बचे रह गए.

Image copyrightSabeena Jane Blackbird Alamy

झील के आस-पास इंसान के कंकालों की खोज, केन्या के वैज्ञानिक रिचर्ड लीकी ने 1968 में शुरू की थी. पहली बड़ी कामयाबी उन्हें 1972 में मिली जब, उन्हें होमो रुडोल्फेन्सिस नाम के आदि मानव के सिर का कंकाल मिला.

इससे इस दावे को बल मिला कि आज के इंसान किसी एक प्रजाति के सीधे वारिस नहीं. आज के मानवों से पहले, धरती पर आदि मानव की कई प्रजाति थीं. जैसे 'होमो इरेक्टस', 'होमो हैबिलिस', 'पैरेन्थ्रोपस बोइसी'. और अब उसमें होमो रुडोल्फेन्सिस का भी नाम जुड़ गया.

हो सकता है कि उस वक़्त आदि मानव की और भी नस्लें धरती पर रही हों. इन्हीं में से एक, होमो इरेक्टस से आज के इंसान की नस्ल का विकास हुआ. तुर्काना झील के पास मिला आठ साल के बच्चे के कंकाल ने इस थ्योरी को सही साबित किया है.

इंसानों की पहली प्रजाति अफ्रीका में पैदा हुई थी. इन्हीं में से एक होमो इरेक्टस, पहले आदि मानव थे जो अफ्रीका से निकलकर एशिया और यूरोप में फैले.

Image copyrightIgnacio de la Torre

ये आज के इंसानों से काफ़ी मिलते-जुलते थे. जैसे ये सीधे चलते थे. इनका दिमाग़, उस वक़्त के मानव की दूसरी प्रजाति ‘होमो हैबिलिस’ से बड़े थे. तुर्काना बच्चे के कंकाल से ये बात भी पता चली कि ‘होमो इरेक्टस’ चलते वक़्त अपने हाथ में कुछ सामान लेकर चल सकते थे.

वैज्ञानिक कहते हैं कि अगर आप तेज़ी से चल सकते हैं. दौड़ते वक़्त हाथ में सामान लेकर चल सकते हैं तो बड़ी बात है. अब अगला सवाल है कि ये आदि मानव आख़िर हाथ में लेकर चलते क्या थे?

वैज्ञानिक मानते हैं कि ‘होमो इरेक्टस’ आदि मानव, ज़रूर हाथ में भाले या कुल्हाड़ी लेकर चलते रहे होंगे, क्योंकि वो फेंकना जान गए थे जबकि हमारे दूसरे पुरखे, बंदर, चिंपैंजी या गोरिल्ला, जो पेड़ पर रहते थे, वो हाथ से कुछ फेंकने में नाकाम थे.

Image copyrightSPL

हाथ से फेंक देने की इस ताक़त के बूते, ‘होमो इरेक्टस’ शिकार करने के उस्ताद हो गए होंगे. इस वजह से उन्हें अपना दायरा बढ़ाने में मदद मिली. उस वक़्त धरती पर बड़े बदलाव हो रहे थे. जंगल कम हो रहे थे.

घास के मैदान बढ़ रहे थे. ऐसे में जंगली दुश्मनों से बचने में उस वक़्त के इंसानों को दिक़्क़त होती थी. ऐसे में शिकार की कला से वो अपनी जान के दुश्मनों से निपट सकते थे.

वैज्ञानिक मानते हैं कि ऐसे दुश्मनों का होमो इरेक्टस ने डटकर सामना किया होगा. इन्हीं दुश्मनों की वजह से अलग-अलग रहने वाले आदि मानवों को साथ रहने के फ़ायदे भी नज़र आए होंगे. वो साथ रहकर शिकार कर सकते थे, दुश्मन का मुक़ाबला कर सकते थे. ऐसे ही इंसानों के एक दूसरे से जुड़कर क़बीले या समुदाय बनाने की सोच पैदा हुई होगी.

वैज्ञानिकों को धरती पर कई जगह से पत्थर की बनी कुल्हाड़ियां भी मिली हैं, जो उसी दौर की हैं. तो होमो इरेक्टस, पत्थरों को काट-छांटकर ऐसे हथियार बना भी सकते थे और अपने साथियों को सिखा भी सकते थे.

पत्थर की ऐसी पहली कुल्हाड़ियां क़रीब अठारह लाख साल पुरानी हैं, जो केन्या की तुर्काना झील के पास मिली हैं. माना जाता है कि होमो इरेक्टस ने ही इन्हें बनाया होगा.

Image copyrightImages of Africa Photo

वैज्ञानिक मानते हैं कि पहली कुल्हाड़ी के विकास के क़रीब दस लाख साल बाद तक इंसान ने कोई ख़ास तरक़्क़ी नहीं की, क्योंकि पत्थर की इस कुल्हाड़ी से स्विस नाइफ़ जैसे कई काम लिए जा सकते थे. शिकार करने से लेकर उसे काटने-छांटने तक.

हालांकि, उस वक़्त के आदि मानवों की कोई ज़ुबान नहीं होती थी. मगर वो इशारों से एक दूसरे से बात कर लेते थे. तभी ऐसी पत्थर की कुल्हाड़ियां बनाने तरीक़ा भी सिखा देते थे.

केन्या की तुर्काना झील को आदि मानवों के इतिहास का ख़ज़ाना कहा जाता है. वहां से मिले कुछ और कंकाल, आदि मानवों से पहले के पुरखों के इतिहास पर भी रोशनी डालते हैं.

जैसे 1974 में मिला लूसी नाम का कंकाल, जिसे ‘ऑस्ट्रेलोपिथेकस अफारेन्सिस’ प्रजाति का नाम दिया गया था.

ये बंदरों और आदि मानवों के बीच की मिसिंग लिंक थी जो वैज्ञानिकों के हाथ लग गई थी. इस कंकाल के मिलने से पहले ये माना जाता था कि होमो प्रजाति के आदि मानवों से पहले के पुरखे, बंदर या गोरिल्ला जैसे ही रहे होंगे.

मगर, लूसी नाम का ये कंकाल मिलने से साफ हो गया कि बंदरों से इंसानों का विकास, लूसी जैसे आदि मानवों के पुरखों के ज़रिए हुआ था.

Image copyrightSabena Jane Blackbird Alamy

नब्बे के दशक में वैज्ञानिकों की टीम ने तुर्काना झील के आस-पास से लूसी के भी पहले की एक नस्ल की खोज कर डाली. इसे ‘ऑस्ट्रेलोपिथेकस एनामेंसिस’ नाम दिया गया.

कुछ सालों बाद, आदि मानवों के पुरखों की एक और प्रजाति का पता चला. ये सब खोजें, तुर्काना झील के पास खोज करने वाले पहले वैज्ञानिक रिचर्ड लीकी की पत्नी मीव लीकी ने की थीं.

इन नए कंकालों की खोज से वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे कि इंसान की आज की प्रजाति का विकास किसी एक प्रजाति के आदि मानव से नहीं हुआ.

आज से क़रीब तीस लाख साल पहले, धरती पर आदि मानवों से पहले और बंदरों से मिलती जुलती कई प्रजातियां रही होंगी. इन्हीं में से एक विकसित होकर आज के इंसान के तौर पर विकसित हुई.

Image copyrightScience Source SPL

वैसे तुर्काना झील की परतों में छुपा इंसान के विकास का ये ख़ज़ाना, अब भी लोगों को चौंका रहा है. अभी पिछले साल ही, झील के पास, क़रीब तीस लाख साल पुराने पत्थर के हथियार मिले.

पहले माना जाता था कि पहले हथियार इंसानों की होमो इरेक्टस नस्ल ने बनाए होंगे. मगर तीस लाख साल पुराने पत्थर के इन हथियारों से साफ़ हो गया कि उससे पहले के मानवों के पुरखों ने भी कुछ-कुछ कल-पुर्ज़े बनाने सीख लिए थे.

तुर्काना झील इंसान के विकास का केंद्र रही हो, ऐसा नहीं. बस वो उस जगह पर थी, जहां कंकाल सुरक्षित रह गए. इसी वजह से उसकी अहमियत बढ़ गई.

अगर वहां कंकाल सुरक्षित नहीं रहते, तो इंसानों को अपनी विकास गाथा समझने में अभी और वक़्त लगना था. यही इस झील की सबसे बड़ी अहमियत है.


 


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